Hindi Discourse
ध्यान < दृष्टि की स्थिरता के लिए सब ओर से पूर्णतः निश्चिंत होना आवश्यक है,
जब तक निश्चिंतता भंग है ध्यान < दृष्टि
की स्थिरता संभव नही है,
जब भी ध्यान में बैठो सब ओर से निश्चिंत होकर बैठो, ध्यान अवश्य लगेगा,
जब तक संसार को, सांसारिक पदार्थों को महत्व दे रहे हो,
तब तक उसके दबाव में होने से तुम पूर्णतः निश्चिंत नही हो सकते,
ईमानदारी से बताओ तुम किसे महत्व दे रहे हो,
क्या वाकई तुम सत्य जानने को महत्व दे रहे हो, यथार्थतः सत्य स्पष्टता के निमित्त सम्यक् अभ्यास को महत्व दे रहे हो,
या अपनी अभिलाषाओं को पूरा करने को महत्व दे रहे हो,
स्त्री-पुत्र, मान-सम्मान, धन-वैभव, पद-प्रतिष्ठा, यश-ऐश्वर्य प्राप्त करने को महत्व दे रहे हो,
जिसे भी तुम महत्व दे रहे हो उसी दिशा में तुम्हारा मन लगा रहेगा, ध्यान लगा रहेगा,
इसलिए जब तुम ध्यान में बैठते हो,
अगर ध्यान में तुम्हारा मन नही लगता है,
तो तब निश्चित ही तुम्हारी महत्वबुद्धि ध्यान में नही है कहीं और है,
इसलिए तुम्हारा मन कहीं और ही चला जाता है, ध्यान में नही रह पाता है,
ध्यान रहे, बुद्धि का धर्म है (बुद्धि के निमित्त धर्म है) महत्व देना,
इसलिए बुद्धि को महत् भी कहा जाता है,
जहाँ भी तुम्हारी महत्वबुद्धि रहती है,
महत्वबुद्धि के दबाव में वहीं तुम्हारा मन रहता है
अगर तुम्हारी महत्वबुद्धि सांसारिक पदार्थों में है,
सांसारिक अभिलाषाओं की पूर्ति में है,
तो महत्वबुद्धि के दबाव में वहीं तुम्हारा मन रहेगा,
इसलिए किसी भी अर्थ में महत्वबुद्धि का सम्मोहन भंग हो, इसके लिए उस अर्थ के प्रति उपेक्षा में होना आवश्यक है,
ध्यान रहे,
यह मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है,
कि कहीं न कही उसकी महत्वबुद्धि रहती ही है,
और कहीं न कहीं उसकी उपेक्षा भी रहती ही है,
इसलिए इस स्वाभाविक प्रवृत्ति को देखते हुए जो भी सकारात्मक अर्थ में धनात्मकता है उसके प्रति महत्वबुद्धि हो,
और जो भी नकारात्मक अर्थ में ऋणात्मकता है उसके प्रति उपेक्षा हो,
जब सकारात्मक अर्थ में महत्वबुद्धि पूर्ण हो जाती है,
और नकारात्मक अर्थ में उपेक्षा पूर्ण हो जाती है,
तब ही जीवन का पूर्ण संतुलन रहता है,
English Translation
For Meditation and stability of vision it is necessary to be completely free of worries from every aspect. As long as peace of mind is disturbed, attention and stability of vision is not possible.
When you sit for meditation, free yourself from worries, and you’ll find it much easier to meditate. As long as you are giving importance to the world and worldly things, you cannot be completely worry free due to its pressure
Honestly, tell me what you are giving importance to. Are you truly valuing the pursuit of truth? or genuinely giving importance to proper practice for the sake of revelation of actual truth, or are you prioritizing fulfilling your desires?
You are giving importance to attaining spouse and children, honor and respect, wealth and glory, position and status, fame and riches.
Whatever you value, your mind and focus will remain directed towards that.
Therefore, when you sit for meditation, if your mind doesn’t focus, it’s certain that your priorities are not aligned with meditation but are elsewhere. That’s why your mind goes somewhere else and cannot remain in meditation
Keep in mind, it is the nature of the intellect to assign importance (the purpose of the intellect is to give importance), which is why intellect in Hindi is also called Mahat (which translates to Importance)
Wherever your sense of importance lies, under its influence, your mind also remains there. If your sense of importance is in worldly possessions or in fulfilling worldly desires, then under that influence, your mind will remain focused there.
Therefore, to break the hypnotism of the intellect in any aspect, it is necessary to cultivate a sense of indifference towards that aspect
Keep in mind that it is a natural tendency of humans to always have a sense of importance somewhere and, at the same time, a degree of neglect somewhere else.
Therefore, considering this natural tendency, your sense of importance should be directed toward whatever is positive and constructive and there should be disregard for whatever is negative and destructive.
When your intellect is fully aligned with positive aspects, and negative aspects disregarded, only then there is complete balance in your life.