Role as a Meditator

Hindi Discourse

तुम्हारी भूमिका बस उपस्थित भर होने में निमित्त भर की है,

इससे इतर तुम्हारी कोई भूमिका नही है,

यही तुम्हारा सहज स्वाभाविक धर्म है,

तुम्हें तुम्हारी यह भूमिका याद होनी आवश्यक है,

अन्यथा क्रियात्मक सापेक्षिक जाल में उलझ सकते हो….

_श्वास अपनी जगह पर चल रही है,

दृष्टि अपनी जगह पर है, सीध अपनी जगह पर है,

दिखना, ज्ञात होना अपनी जगह पर है,

जो जहाँ है < वह अपनी जगह पर ऋत् संगत < स्वाभाविक न्यायपूर्ण व्यवस्था से है,

इसमें तुम्हारी भूमिका बस निमित्तमात्र < उपस्थिति भर की है < जो सहज ही है,

इसलिए तुम्हें अपनी तरफ से अलग से कुछ भी नही करना है,

तुम्हें अलग से उपस्थित भी नही होना है,

क्योंकि तुम्हारा उपस्थित भर होना सहज ही है,

तुम पूछोगे फिर कमी क्या है,

कमी बस सहज स्वाभाविक ठीक सीध में संतुलनपूर्ण स्थिरता की है,

सामान्यतया तुम्हारे ध्यान में स्थिरता नही रहती है,

तुम्हारा ध्यान कहीं भी पूर्णतः स्थिर नही रहता है,

चैतसिक दबाव में चलायमान रहता है,

कब कहाँ से कहाँ ध्यान चला जाए,

इस पर तुम्हारा नियंत्रण नही रहता है,

तुम्हें बस मुख के ऊपरी भाग में नाक के ठीक सामने यथा सहज श्वास के ज्ञात होने की सीध में भली-भाँति संतुलन-पूर्वक स्थिरता का निमित्त पूर्ण करना है,

भली-भाँति संतुलन-पूर्वक स्थिरता का निमित्त पूरा होते ही इसके सकारात्मक प्रभाव के निमित्त पहले की अपेक्षा और सीधी,स्पष्ट,पारदर्शी दृष्टि स्पष्ट हो जाती है,

जहाँ पहले की अपेक्षा और सीधी, स्पष्ट, सहज सीध स्पष्ट रहती है,

English Translation

Your role is merely that of being present; beyond that, you have no other role. This is your natural and inherent duty. It is essential for you to remember this role; otherwise, you may become entangled in the web of functional relativity.

Breath is occurring in its place,
Vision is in its place,
Direction of breath is in its place,
To be seen, to be known is in its place.
Whatever is, is in its rightful place, aligned with natural justice.

In this, your role is merely that of a witness, just being present, which is effortless.
Therefore, you need not do anything extra,
You do not even need to be separately present,
Because your mere presence is effortless.

You may ask, then what is lacking?
The lack is merely in the natural, balanced stability of the alignment.
Typically, your attention does not remain stable;
Your focus does not stay completely still anywhere,
It moves under the pressure of consciousness.

You do not have control over where your attention wanders.
Right in front of your nose, at the upper part of your face, along with the awareness of natural breathing.
Once balance and stability are established, the positive effects become clearer than before.
When the alignment is stable, the clarity in perception improves.
Thus, until the clearest, most straightforward alignment is realized,
The process of moving towards greater clarity will continue.

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